ग़ज़ल लिखना सीखें : Learn to write Ghazal
ग़ज़ल लिखना एक सुगठित शिल्प और नियमबद्ध प्रक्रिया है, जिसमें भाव, भाषा, छंद (बहर), काफिया, रदीफ और विन्यास, अभिव्यक्ति का समावेश होता है। सही ग़ज़ल लिखने के लिए इन सभी तत्वों की बारीकी से जानकारी और अभ्यास आवश्यक है.
ग़ज़ल की संरचना
ग़ज़ल में 5 से 25 शेर (दो पंक्तियाँ/मिसरे) होते हैं, जो समान बहर (छंद) में लिखे जाते हैं।
प्रत्येक शेर स्वतंत्र भाव व अर्थ रखता है, लेकिन उसे एक रदीफ और काफिया से जोड़ा जाता है.
ग़ज़ल के पहले शेर को "मतला" कहते हैं — इसमें दोनों मिसरों में काफिया और रदीफ होते हैं।
अंतिम शेर में शायर अपना तखल्लुस (उपनाम) शामिल करता है, जिसे "मक़ता" कहते हैं.
ग़ज़ल के मुख्य अंग
काफिया: तुकांत शब्द, उदाहरण: “प्यार, विचार, स्वीकार”
रदीफ: हर शेर की दूसरी पंक्ति के अंत में आने वाला स्थिर शब्द/शब्दावली
बहर: छंद या मात्राक्रम; ग़ज़ल की लय और स्वरों की गिनती; उर्दू में 32 प्रकार की बहरें प्रचलित हैं.
मतला: ग़ज़ल का पहला शेर, दोनों मिसरों में काफिया व रदीफ होना जरूरी
मक़ता: ग़ज़ल का आखिरी शेर जिसमें लेखक का तखल्लुस आता है
काफिया और रदीफ़ चुनते समय ग़ज़ल की खूबसूरती तथा सहजता बनाए रखना जरूरी है। नीचे कुछ महत्वपूर्ण टिप्स दिए जा रहे हैं:
रदीफ़ ऐसा शब्द चुनें जो हर शेर के दूसरे मिसरे में सरलता से आ सके और ग़ज़ल की भावना से मेल रखे।
काफिया तुकांत शब्दों का समूह (जैसे: प्यार, स्वीकार, विचार) ऐसा हो, जिससे कई शेर रचनात्मक रूप से बन सकें।
रदीफ़ और काफिया बहुत कठिन या अप्रत्याशित न चुनें, ताकि शेर गढ़ते समय अर्थ और भावनाओं को दबाना न पड़े।
पहले एक मजबूत मतला (शुरुआती शेर) लिखने का प्रयास करें, उसमें काफिया-रदीफ़ की बनावट जांच लें।
यदि काफिया कम मिलते हैं, तो भाव या रदीफ़ में लचीलापन रखें।
शेरों के भाव और तुकांत का संतुलन बना रहे, सिर्फ तुक के लिए भाव की बली न दें।
विविधता रखना चाहें तो रदीफ़ छोटा, आम और भावपूरक रखें, जैसे: हमें, चाहिए सदा।
इन सावधानियों से आपकी ग़ज़ल में काफिया-रदीफ़ की रवानी बनी रहेगी और लेखन प्रक्रिया भी आसान होगी।
तकनीकी व्याख्या
हर शेर स्वतंत्र भाव के साथ साथ तकनीकी रूप से ग़ज़ल की पहचानी मेंटेन करता है।
सही काफिया और रदीफ के साथ बहर की पाबंदी ग़ज़ल को परिपूर्ण बनाती है।
मतला और मक़ता हर ग़ज़ल की अस्मिता बढ़ाते हैं।
बहर की गणना करने के लिए शब्दों के स्वरों (मात्रा) की गिनती की जाती है.
ग़ज़ल लिखने के कदम
विषय का चयन करें (जैसे प्रेम, विरह, समाज, जिंदगी).
काफिया और रदीफ निर्धारित करें—समस्त शेर अंत में इन्हीं से बंधेंगे।
चुनी गई बहर पर ग़ज़ल के शेरों का तक्तीअ करें—मात्रा, शब्दों की लय को साधें।
मतला लिखें और फिर उसके अनुरूप अन्य शेर बनायें।
अंतिम शेर में अपना तखल्लुस जोड़ें।
उदाहरण
मतला:
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
यहाँ “चाहिए” रदीफ है, “पिघलनी/निकालनी” काफिया है.
ग़ज़ल लेखन के लिए सुझाव
हमेशा एक ही बहर में सभी शेर लिखें।
भाव में एकरूपता रखें, लेकिन हर शेर भाव से स्वतंत्र भी हो सकता है।
रदीफ और काफिया का सही चुनाव ग़ज़ल की खूबसूरती बढ़ाता है।
अभ्यास करें और तक्तीअ की तकनीक जानें।
प्रसिद्ध ग़ज़लकारों की ग़ज़लों को पढ़ें, सुनें और उनसे सीखें।
ग़ज़ल लिखना शिल्प, सौंदर्य और भावना के संतुलन का अद्भुत अनुभव है, जिसमें निरंतर अभ्यास के साथ पारंगत हुआ जा सकता है.
