मात्रिक अर्द्धसम छन्द (मापनीमुक्त मात्रिक छन्द) परिभाषा ,प्रकार एवम् उदाहरण ?
मात्रिक अर्द्धसम छन्द (मापनीमुक्त मात्रिक छन्द):
इस प्रकार के छन्दों में चार चरण होते हैं, विषम चरण एक समान होते हैं जबकि सम चरण इनसे भिन्न किन्तु आपस में एक समान होते हैं। समानता का अर्थ केवल मात्राओं की संख्या का समान होना नहीं है, अपितु प्रकृति भी समान होनी चाहिए। मात्रिक अर्धसम छन्द प्रायः मापनीमुक्त होते हैं। इन छन्दों को परम्परा से दो पंक्तियों में लिखा जाता है किन्तु यदि चार चरणों को अलग-अलग चार पंक्तियों में लिखा जाये तो इससे छन्द में कोई दोष नहीं आ जाता है अपितु छन्द की प्रकृति और अधिक स्पष्ट हो जाती है । सम्प्रति यहाँ पर चार चरणों को चार पंक्तियों में लिखने को वरीयता दी गयी है।
दोहा , सोरथा, हरिपद, धत्तानंद, उल्लाला, रुचिरा आदि छंद मात्रिक अर्द्धसम छन्द के उदाहरण हैं।
दोहा
इस छन्द के पहले तीसरे चरण में १३ मात्राएँ और दूसरे–चौथे चरण में ११ मात्राएँ होती हैं। विषय (पहले तीसरे) चरणों के आरम्भ जगण नहीं होना चाहिये और सम (दूसरे–चौथे) चरणों अन्त में लघु होना चाहिये।
उदाहरण –
शीश झुका मेरा सदा, माता तेरे द्वार।
मां वीणा आशीष दे, हो जाए उद्धार।।(२४ मात्राएँ)
~ वैधविक
सोरठा
सोरठा छन्द के पहले तीसरे चरण में ११–११ और दूसरे चौथे चरण में १३–१३ मात्राएँ होती हैं। इसके पहले और तीसरे चरण के तुक मिलते हैं। यह विषमान्त्य छन्द है।
उदाहरण –
रहिमन हमें न सुहाय, अमिय पियावत मान विनु।
जो विष देय पिलाय, मान सहित मरिबो भलो।।
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~ रहीम
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