डॉ. गीता सीताराम को करंठ साहित्य रत्न पुरस्कार : Karantha Sahitya Ratna Award to Dr. Geetha Seetharam
डॉ. गीता सीताराम को करंठ साहित्य रत्न पुरस्कार
मैसूर की प्रसिद्ध लेखिका डॉ. गीता सीताराम को उनके नाटक 'विश्वकवि रविंद्रनाथ: एक रंगदर्शन' के लिए करंठ साहित्य रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार कर्नाटक के बेल्लारी स्थित करंठ रंगा लोक संस्था द्वारा प्रदान किया जा रहा है, जो कन्नड़ साहित्य और रंगमंच के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। पुरस्कार वितरण समारोह 30 नवंबर 2025 को बेल्लारी में आयोजित होगा।
पुरस्कृत कृति का महत्व
'विश्वकवि रविंद्रनाथ: एक रंगदर्शन' नाटक स्वाथी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ, जो शांतिनिकेतन की शताब्दी वर्ष (1921-2021) के उपलक्ष्य में तैयार किया गया। यह नाटक रवींद्रनाथ टैगोर के जीवन, साहित्य और दर्शन को रंगमंचीय रूप में प्रस्तुत करता है, जो कन्नड़ साहित्य में विश्वकवि के योगदान को उजागर करता है। डॉ. गीता सीताराम की यह कृति रवींद्र साहित्य की गहराई को कन्नड़ पाठकों तक पहुंचाने में मील का पत्थर साबित हुई है।
डॉ. गीता सीताराम का साहित्यिक सफर
डॉ. गीता सीताराम मैसूर की वाग्गेयकार (संगीत रचयिता) और बहुमुखी लेखिका हैं। पहले भी उन्हें राज्यस्तरीय भगीरथ साहित्य रत्न पुरस्कार प्राप्त हो चुका है, जो उप्पारा मित्र पत्रिका बालागा द्वारा प्रदान किया गया था। उनका लेखन कन्नड़ साहित्य, नाटक, संगीत और सांस्कृतिक अध्ययन पर केंद्रित है। मैसूर साहित्य जगत में उनका योगदान सराहनीय रहा है, जिसमें रवींद्रनाथ जैसे महान कवियों पर रचनाएं प्रमुख हैं।
यह पुरस्कार कन्नड़ साहित्य में रवींद्र साहित्य के प्रचार-प्रसार और डॉ. गीता सीताराम के निरंतर प्रयासों को मान्यता प्रदान करता है। समारोह में साहित्यकारों और रंगकर्मियों की उपस्थिति अपेक्षित है।
डॉ. गीता सीताराम की प्रमुख कृतियाँ और प्रकाशन सूची:
विश्वकवि रविंद्रनाथ: एक रंगदर्शन
यह नाटक रवींद्रनाथ टैगोर के जीवन और साहित्य को कन्नड़ भाषा में प्रस्तुत करता है। यह डॉ. गीता सीताराम की चर्चित रचनाओं में से एक है, जिसके लिए उन्हें करंठ साहित्य रत्न पुरस्कार भी मिला है।बदुकु पारिजाता
कन्नड़ भाषा में लिखी गई यह पुस्तक भी डॉ. गीता सीताराम की महत्वपूर्ण कृतियों में से है।गीत रामायण भाग 1
यह कृति रामायण के भक्ति काव्यों का संग्रह है, जो कर्नाटक के स्थानीय संगीत एवं साहित्य में महत्वपूर्ण है।सांस्कृतिक और साहित्यिक अध्ययन
डॉ. गीता सीताराम का लेखन सांस्कृतिक, संगीत और साहित्य के क्षेत्रों में भी व्यापक है, जिसमें वे कन्नड़ साहित्य को समृद्ध करने वाली अनेक रचनाएँ प्रस्तुत कर चुकी हैं।अन्य प्रकाशन
अनेक नाटकों का निर्देशन और लेखन
रवींद्रनाथ टैगोर के अन्य साहित्य पर शोध और अनुवाद
कन्नड़ भाषा में साहित्यिक लेख
स्थानीय एवं पारंपरिक संगीत का संरक्षण और प्रचार
डॉ. गीता सीताराम की कृतियों का प्रकाशन पंचजन्या पब्लिकेशन्स, स्वाथी प्रकाशन जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा किया गया है। उनकी रचनाएँ साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं और कन्नड़ भाषा साहित्य में उनका योगदान अत्यधिक सम्मानित है।
डॉ. गीता सीताराम का साहित्यिक विषय और शैली विशिष्ट एवं बहुआयामी है। उनके साहित्य का केंद्र मुख्य रूप से कन्नड़ भाषा में संस्कृति, इतिहास, और भक्ति काव्यों की प्रस्तुतियाँ हैं, जिसमें वे पारंपरिक और आधुनिक तत्वों का सुंदर संयोजन करती हैं।
साहित्यिक विषय
भक्ति और धार्मिक साहित्य: डॉ. गीता की रचनाएँ मुख्यतः भक्ति और धार्मिकता से प्रेरित हैं, जैसे कि रामायण, रविंद्रनाथ टैगोर की भक्तिपूर्ण रचनाएँ, तथा भारतीय पारंपरिक संगीत और नाटकों का समावेश। वे धार्मिक भावनाओं के माध्यम से सामाजिक और नैतिक विषयों को उद्घाटित करती हैं।
सांस्कृतिक अध्ययन: उनका लेखन कर्नाटक और भारतीय लोक-संस्कृति, संगीत, और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार पर केंद्रित है।
ऐतिहासिक और जीवनी साहित्य: प्रमुख साहित्यकारों और कवियों जैसे रविंद्रनाथ टैगोर के जीवन और कृतित्व पर आधारित शोध और नाट्यरूपांतरण उनके विषयों में शामिल हैं।
शैली विश्लेषण
संरचित नाट्य लेखन: डॉ. गीता की शैली में नाटकीयता और संवादात्मकता प्रमुख है, जो उनके रंगमंचीय कार्यों में परिलक्षित होता है।
भक्ति काव्य की सहजता और गहराई: उनके भक्ति गीत और काव्य सरल भाषा में गहन आध्यात्मिक भाव व्यक्त करते हैं, जो सामान्य जनमानस तक सहज पहुँच बनाते हैं।
सांगीतिक लय और तालमेल: उनका लेखन संगीत और कविता के बीच संतुलन बनाए रखते हुए भावनाओं को तनावहीन और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करता है।
आधुनिकता और पारंपरिकता का संगम: वे आधुनिक साहित्यिक तकनीकों का उपयोग पारंपरिक विषयों में करती हैं, जिससे उनका साहित्य समकालीन और शाश्वत दोनों लगता है।
डॉ. गीता सीताराम का साहित्यिक योगदान न केवल भाषा के विकास में सहायक है, बल्कि सांस्कृतिक जागरूकता और आध्यात्मिकता के प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उनका अनूठा दृष्टिकोण और सरल अभिव्यक्ति शैली उन्हें कन्नड़ साहित्य के अग्रणी लेखक बनाती है।
