अमावस्या और पूर्णिमा: दो बहनों की कहानी
बहुत समय पहले, आकाश में दो बहनें रहती थीं - अमावस्या और पूर्णिमा। अमावस्या, जिसका नाम ही अंधेरी रात था, गहरी, शांत और रहस्यमयी थी। उसका स्वभाव एकांतप्रिय था और वह अक्सर तारों की चादर ओढ़े अकेले ही घूमती रहती थी।
वहीं, पूर्णिमा बिल्कुल विपरीत थी - उज्ज्वल, गोल और प्रकाश से भरपूर। उसका स्वभाव मिलनसार था और वह अपनी चांदनी से पूरी दुनिया को रोशन करना चाहती थी। जब वह प्रकट होती, तो हर तरफ़ खुशी और उत्सव का माहौल छा जाता।
दोनों बहनें एक ही आकाश की संतान थीं, फिर भी उनके स्वभाव और रूप में इतना अंतर था। लोग अक्सर उनकी तुलना करते थे, अमावस्या की शांति को रहस्यमय और कभी-कभी अशुभ मानते थे, जबकि पूर्णिमा के प्रकाश को शुभ और आनंद का प्रतीक मानते थे।
एक दिन, अमावस्या उदास बैठी थी। उसने पूर्णिमा को हर तरफ़ प्यार और प्रशंसा पाते देखा था, जबकि उसे अक्सर अनदेखा किया जाता था या डर की नज़रों से देखा जाता था।
अमावस्या (धीमी, उदास आवाज़ में): क्यों दीदी? क्यों सब तुम्हें इतना प्यार करते हैं और मुझसे डरते हैं? क्या मेरे हिस्से में सिर्फ़ अंधेरा ही लिखा है?
पूर्णिमा ने अपनी बहन की उदासी महसूस की। वह अपनी उज्ज्वल रोशनी को समेटकर अमावस्या के पास आई।
पूर्णिमा (प्यार भरी आवाज़ में): मेरी प्यारी बहन, ऐसा मत कहो। हम दोनों ही इस आकाश के लिए ज़रूरी हैं। मेरा प्रकाश तभी सुंदर लगता है, जब उसके विपरीत तुम्हारा शांत अंधेरा होता है।
अमावस्या ने हैरानी से पूर्णिमा की ओर देखा।
पूर्णिमा: सोचो, अगर हमेशा उजाला ही रहे, तो तारों का सौंदर्य कौन देखेगा? रात की शांति में ही तो लोग अपने भीतर की आवाज़ सुनते हैं, सपने देखते हैं। तुम्हारा अंधेरा विश्राम और नवीनता का प्रतीक है। धरती माँ भी तो तुम्हारे आने पर एक गहरी सांस लेती है।
अमावस्या ने पहली बार इस तरह से अपने अस्तित्व के बारे में सोचा था। उसे पूर्णिमा की बातों में सच्चाई दिखाई दी।
अमावस्या: क्या सच में दीदी? मुझे तो हमेशा लगा कि मैं बस एक खालीपन हूँ।
पूर्णिमा: नहीं, मेरी प्यारी बहन। तुम खालीपन नहीं, संभावनाओं का गर्भ हो। अंधेरे में ही नए विचारों के बीज पनपते हैं। और याद रखना, मेरे प्रकाश की चमक भी तुम्हारे बिना अधूरी है। हम दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
उस दिन से, अमावस्या ने अपनी उदासी त्याग दी। उसे समझ आ गया था कि उसका भी अपना महत्व है। वह जान गई कि हर रात एक नई शुरुआत का वादा लेकर आती है, ठीक वैसे ही जैसे पूर्णिमा हर बार एक पूर्णता का एहसास कराती है।
और इस तरह, दोनों बहनें, अमावस्या और पूर्णिमा, आकाश में अपना-अपना कर्तव्य निभाती रहीं। एक अंधेरा लाती, तो दूसरी प्रकाश। एक विश्राम देती, तो दूसरी उत्साह। और दुनिया ने समझा कि दोनों ही अपनी-अपनी जगह पर सुंदर और महत्वपूर्ण हैं।