मात्रिक छंद (Matrik Chhand) के प्रकार मात्रिक छन्द की परिभाषा, प्रकार एवं उदाहरण - Dainik Sahitya
हिंदी काव्यशास्त्र का वह रूप है जिसमें कविता की संरचना मात्राओं की संख्या के आधार पर होती है। इसका मुख्य उद्देश्य लयबद्ध और संगीतात्मक छंद बनाना होता है, जिसमें प्रत्येक पद में मात्राओं की संख्या समान होती है लेकिन लघु और गुरु मात्राओं के क्रम की सख्त आवश्यकता नहीं होती। वह छन्द है जिसमें प्रत्येक पद में मात्राओं (लघु और गुरु मात्राओं) की संख्या समान होती है, परंतु मात्राओं के क्रम की सख्त पाबंदी नहीं होती। यह हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की पारंपरिक कविताओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें कविता को लय और तालबद्धता प्रदान करने के लिए मात्राओं का ध्यान रखा जाता है।
मात्रिक छन्द की परिभाषा
मात्रिक छन्द वह छन्द है जिसमें प्रत्येक पद में मात्राओं की संख्या निश्चित और समान होती है। यहाँ मात्रा की तुलना वर्णों या अक्षरों से की जाती है, जहाँ लघु मात्रा छोटी और गुरु मात्रा बड़ी होती है। यह छन्द कविता को संगीतात्मक लय और ताल प्रदान करता है।
मात्राएँ क्या हैं?
कविता में वर्णों या अक्षरों के उच्चारण की अवधि को कहते हैं, जो लघु (छोटी) और गुरु (बड़ी) मात्राओं में विभाजित होती है। मात्राएँ कविता की लय और ताल का निर्धारण करती हैं।
लघु मात्रा वह मात्रा होती है जिसका उच्चारण अल्पकालीन होता है और इसे एक मात्रात्मक इकाई माना जाता है। जैसे स्वर 'अ', 'इ', 'उ', 'ऋ' की मात्रा लघु होती है।
गुरु मात्रा वह मात्रा होती है जिसका उच्चारण दीर्घकालीन होता है, जो दो मात्राओं के बराबर होती है। जैसे स्वर 'आ', 'ई', 'ऊ', 'ए', 'ऐ', 'ओ', 'औ' की मात्रा गुरु होती है।
कविता में मात्रा निर्धारित करती है कि शब्द और पंक्तियाँ किस प्रकार लयबद्ध और मधुर सुनाई देंगी। मात्राओं के सही संयोजन से कविता में ताल बनता है जो उसकी सुंदरता को बढ़ाता है।
उदाहरण के तौर पर, शब्दों में 'राम' में 'रा' गुरु मात्रा और 'म' लघु मात्रा होती है। भाषा में मात्राएँ कविता लिखने और पढ़ने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये छन्द की नींव होती हैं।
लघु मात्रा (˘) कम अवधि के स्वर होते हैं। उदाहरण: 'कि' में 'ि' लघु मात्रा है।
गुरु मात्रा (¯): लंबी अवधि के स्वर होते हैं। उदाहरण: 'की' में 'ी' गुरु मात्रा है।
मात्रिक छन्द के प्रकार
सम मात्रिक छन्द: लगातार सभी चरणों में मात्राओं की संख्या समान होती है।
उदाहरण: चौपाई रोला हरिगीतिकाअर्द्धसम मात्रिक छन्द: कुछ चरणों में मात्राएँ समान होती हैं, कुछ में भिन्न।
उदाहरण: दोहा सोरठा
विषम मात्रिक छन्द: प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या भिन्न होती है।
उदाहरण: कुण्डलिया, छप्पय
प्रमुख मात्रिक छन्दों के उदाहरण
चौपाई: चार पंक्तियों का एक पद जिसमें प्रत्येक पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं।
दोहा: दोहे का समरूप अर्द्धसम मात्रिक छन्द, जिसमें प्रथम और तृतीय चरण 13-13 मात्राओं के तथा द्वितीय और चतुर्थ 11-11 मात्राओं के होते हैं।
सोरठा: दोहे का उल्टा रूप, जिसमें प्रथम और तृतीय चरण 11-11 तथा द्वितीय और चतुर्थ 13-13 मात्राएँ होती हैं।
रोला: एक विषम मात्रिक छन्द जिसमें चार चरण होते हैं, प्रत्येक में 24 मात्राएँ होती हैं।
मात्रिक छन्द का महत्व
मात्रिक छन्द कविता की संगीतात्मकता का प्रमुख आधार है। यह हिंदी और संस्कृत काव्य को उसकी पारंपरिक लय और ताल प्रदान करता है, जिससे कविता का प्रभाव और सौंदर्य बढ़ता है। मात्राओं के सही संयोजन से कविता अधिक मधुर और संगत होती है।
मात्रिक छन्द का साहित्य में महत्व
कविता की लयबद्धता और ताल सुनिश्चित करता है, जो पाठक और श्रोता दोनों के लिए कविता को सुखद अनुभव बनाता है।
कविता को संगीतात्मक और प्रभावशाली बनाता है, जिससे भावों का संप्रेषण अधिक सहज और गहरा होता है।
मात्रिक छन्द के द्वारा कवि अपनी रचना को संयमित और संरचित रूप में प्रस्तुत कर पाते हैं, जो पाठकों को समझने और याद रखने में आसान होती है।
यह पारंपरिक काव्यशास्त्र का अभिन्न हिस्सा है, जिससे भारतीय भाषा साहित्य की सांस्कृतिक विरासत संरक्षित होती है।
मात्राओं के सही उपयोग से कविता में रस की अनुभूति बढ़ती है, जो काव्य की आत्मा मानी जाती है।
छन्दबद्ध कविता के माध्यम से भावनाओं का सटीक और गहन रूप से व्यक्तिकरण संभव होता है।
निष्कर्ष
मात्रिक छन्द छन्दबद्ध कविता की रचना और उसकी लयबद्धता के लिए एक आवश्यक तत्व है। इसकी सहायता से कवि अपनी काव्य कला में ताल और लय की गहराई ला पाते हैं, जो कि कविता को सौंदर्यपूर्ण, प्रभावशाली और स्मरणीय बनाता है।
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