अब जुनूँ कब किसी के बस में है

उसकी ख़ुशबू नफ़स-नफ़स में है


हाल उस सैद का सुनाईए क्या

जिसका सैयाद ख़ुद क़फ़स में है


क्या है गर ज़िन्दगी का बस न चला

ज़िन्दगी कब किसी के बस में है


ग़ैर से रहियो तू ज़रा होशियार

वो तेरे जिस्म की हवस में है


बाशिकस्ता बड़ा हुआ हूँ मगर

दिल किसी नग़्मा-ए-जरस में है


'जॉन' हम सबकी दस्त-रस में है

वो भला किसकी दस्त-रस में है


लेखक : जॉन एलिया