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हरिचरण../ शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

कहानी - हरिचरण बहुत पहले की बात है। लगभग दस-बारह वर्ष हो गए होंगे। दुर्गादास बाबू तब तक वकील नहीं बने थे। दुर्गादास बंद्योपाध्या...


कहानी - हरिचरण

बहुत पहले की बात है। लगभग दस-बारह वर्ष हो गए होंगे। दुर्गादास बाबू तब तक वकील नहीं बने थे। दुर्गादास बंद्योपाध्याय को शायद तुम ठीक से पहचानते नहीं हो, मैं जानता हूं उन्हें। आइए, उनसे परिचय करा देता हूं।

बचपन में कहीं से एक अनाथ कायस्थ बालक ने रामदास बाबू के घर में आश्रय लिया था। सब कहते, लड़का बड़ा होनहार है, सुंदर बुद्धिमान नौकर। दुर्गादास बाबू के पिता का स्नेही भृत्य।

वह सारा काम निपटा दिया करता। गाय को चारा देने से लेकर बाबू की तेल-मालिश तक, सब वह स्वयं ही करना चाहता। हमेशा व्यस्त रहने में ही उसे खुशी मिलती।

लड़के का नाम हरिचरण था। घर की मालकिन अकसर उसे देखकर चकित होती। कभी-कभार टोक भी देती, ‘हरि, दूसरे नौकर भी हैं। तुम बच्चे हो, इतना काम क्यों करते हो?’

हरि में एक और कमी कह सकते हैं। वह हंसना बहुत पसंद करता था। हंसकर उत्तर देता, ‘मां, हम गरीब हैं। हमेशा काम करना पड़ेगा और वैसे भी बैठकर क्या होगा?’

इस तरह काम करते हुए स्नेह की गोद में पलता हरिचरण का एक वर्ष व्यतीत हुआ।

सुरो रामदास की छोटी बेटी है। उम्र अभी लगभग पांच-छह वर्ष। हरिचरण के साथ उसकी बड़ी आत्मीयता है। जब उसे दूध पिलाना होता तो उसकी मां को हमेशा बड़ी परेशानी होती। अथक प्रयत्न के बाद भी जब वह अपनी बेटी को दूध पीने के लिए नहीं मना पाती तो हरिचरण की बातों का ही उस पर असर होता। अब छोड़ो, यह सब। बेकार की बातें बहुत हुईं। असल मुद्दे पर आता हूं। सुनो! शायद सूरो के हृदय में हरिचरण के प्रति प्रेम का अंकुर फूटने लगा था।

दुर्गादास बाबू की उम्र जब बीस वर्ष की थी, तब की घटना सुनाता हूं। वह उन दिनों कलकत्ते में पढ़ा करता था। घर आने के लिए स्टीमर पर दक्षिण की ओर जाना पड़ता था। उसके बाद भी लगभग दस-बारह कोस पैदल चलना होता। राह इतनी सुगम्य नहीं थी। इस कारण दुर्गादास बाबू घर बहुत कम आते।

इन दिनों वह बी.ए. पास होकर घर लौटे हैं। मां अत्यंत व्यस्त थी। उन्हें अच्छी तरह खिलाना-पिलाना, देखभाल करना जैसे पूरे घर में उमड़ पड़ा था। दुर्गादास ने पूछा, ‘मां, यह लड़का कौन है?’

‘यह एक कायस्थ का बेटा है। मां-बाप नहीं है इसलिए तुम्हारे पिता ने उसे रखा है। नौकर का सारा काम कर लेता है और निहायत ही शांत-प्रकृति का है। किसी बात पर भी क्रोधित नहीं होता। आह! मां-बाप हैं नहीं, उस पर छोटा-सा बालक। मैं उससे बहुत स्नेह करती हूं।’ दुर्गादास बाबू को हरिचरण का यही परिचय मिला।

जो भी हो, आजकल हरिचरण का काम बहुत बढ़ गया है, पर इससे वह तनिक भी असंतुष्ट नहीं है। छोटे बाबू (दुर्गादास) को स्नान कराना, आवश्यकतानुसार घड़े में जल भरकर लाना, ठीक समय पर पान उपलब्ध कराना, उपयुक्त अवसरानुसार हुक्के का प्रबंध इत्यादि में वह अत्यंत पटु था। दुर्गादास बाबू भी अकसर सोचते, लड़का निहायत ही ‘इंटेलिजेंट’ है। अतः कपड़े धोना, तंबाकू सजाना जैसे काम हरिचरण के न करने पर और किसी का काम उन्हें पसंद नहीं आता।

कुछ समझ नहीं पाता हूं। कहां का पानी कहां जाकर खड़ा होता है। ये सब बातें सबके लिए समझ पाना संभव नहीं, आवश्यकता भी नहीं और मेरा भी फिलासफी लेकर डील करने का उद्देश्य नहीं है। फिर भी आपसे दो बातें कहने में हानि क्या है?

आज दुर्गादास बाबू को एक भव्य रात्रिभोज का निमंत्रण है। घर में नहीं खाएंगे, संभवतः देर रात से लौटेंगे। सो, हरिचरण से कह गए कि सब काम निपटाने के बाद उसका बिस्तर व्यवस्थित कर रखे।

अब हरिचरण की सुनें। दुर्गादास बाबू बाहर के बैठक में रात को सोते हैं। इसका कारण कोई नहीं जानता। मुझे लगता है कि पत्नी के मायके में रहने के कारण ही उन्हें बाहर के कमरे में सोना अच्छा लगता है। रात को सोते समय हरिचरण उनके पांव दबाता है और जब वे गहरी नींद में चले जाते हैं तो वह साथ के कमरे में सोने चला जाता है।

उस दिन शाम को हरिचरण के सिर में दर्द शुरू हुआ। उसने जान लिया कि अब बुखार आने में देर नहीं। पहले भी बीच-बीच में उसे बुखार होता रहता है। अतः वह इसके लक्षणों से परिचित है। वह अधिक देर तक न बैठ सका और अपने कमरे में जाकर सो गया। छोटे बाबू का बिस्तर नहीं लग पाया है, इसका भान भी न रहा। रात को सबने भोजन किया पर हरिचरण भोजन के लिए नहीं आया। मालकिन देखने आई। वह सो रहा था। उसके शरीर पर हाथ रखा तो वह बहुत गर्म था। वह समझ गई कि उसे बुखार हुआ है। अतः उसे विरक्त किए बिना वहां से चली आई।

रात का दूसरा पहर था। भोज खाकर जब दुर्गादास बाबू घर लौटे तो देखा कि उसका बिस्तर तैयार नहीं है। एक तो नींद सता रही थी, उस पर सारी राह यह सोचते आए थे कि घर पहुंचते ही चित्त हो जाऊंगा और हरिचरण उसके पांव दबाकर सारी थकान मिटा देगा। इसी सुखानुभूति की अल्पतंद्रा में सुबह हो जाएगी। हताश होकर वे चिल्ला उठे, ‘हरिचरण, ओ हरि, हरे’ इत्यादि कहते हुए शोर मचाने लगे। पर कहां था हरि? वह ज्वरपीडि़त संज्ञाहीन पड़ा हुआ था। तब दुर्गादास बाबू को ख्याल आया, कम्बख्त सो गया होगा। कमरे में जाकर देखा तो सचमुच।

अधिक सहन नहीं कर पाए। जोर से उसे बालों से पकड़कर खींचते हुए बिठाने की कोशिश की पर वह फिर से निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़ा। तब क्रोधाग्नि में झुलसे दुर्गादास को हित-अहित का ज्ञान न रहा और हरि की पीठ पर जूता पहने ही आघात किया। उस भीषण चोट से हरिचरण की चेतना लौटी और वह उठकर बैठ गया। दुर्गादास बाबू ने कहा, ‘तो ज़नाब, मजे से सो रहे हैं। बिस्तर क्या मैं स्वयं लगांऊगा?’ कहते हुए उनका क्रोध और भड़का, ‘हाथ में थामे बेंत से उसकी पीठ पर दो-तीन जड़ दिए।

उस रात जब हरि उसके पांव दबा रहा था, तब शायद एक बूंद आंसू दुर्गादास बाबू के पांव पर गिरा था। फिर तो सारी रात दुर्गादास बाबू सो नहीं पाए। वह एक बूंद आंसू बहुत गर्म महसूस हुआ था। दुर्गादास बाबू हरिचरण को बहुत प्यार करते थे। उसकी नम्रता के लिए वे ही क्यों, वह सबका प्रिय पात्र था। विशेषकर इस महीने भर की घनिष्टता में वह उनका और भी अधिक प्रिय हो उठा था।

रात में कई बार दुर्गादास बाबू को लगा कि एक बार देख आएं, कितनी चोट लगी है, कितनी सूजन हुई है? पर वह एक नौकर है, अच्छा नहीं लगेगा। कई बार मन में आया कि एक बार पूछकर आएं, ‘बुखार कम हुआ क्या?’ पर उससे लज्जा महसूस होती। सुबह हरिचरण मुंह धोकर पानी ले आया, तंबाकू सजाया। दुर्गादास बाबू काश तब भी अगर कह पाते, आहा! वह तो बालक है, अब भी तेरह वर्ष का नहीं हुआ। बालक समझकर भी अपने पास खींचकर देखते, बेंत के आघात से कितना रक्त जमा है, जूते से कितना सूजा है? बालक ही तो है, लज्जा की क्या बात है?

नौ बजे के लगभग कहीं से एक तार आया। उससे दुर्गादास बाबू का मन विचलित हो उठा। खोलकर देखा, पत्नी बीमार है। उनका हृदय बैठ गया। उसी दिन कलकत्ता लौटना पड़ा। गाड़ी में बैठते हुए सोचा—भगवान। समझूंगा प्रायश्चित हुआ।

प्रायः महीना हो गया। दुर्गादास बाबू का चेहरा आज प्रफुल्ल है। उनकी पत्नी बच गई।

घर से आज एक पत्र आया। उनके छोटे भाई का था। नीचे पुनश्चः करके लिखा हुआ था—‘बड़े दुःख की बात है। कल सुबह दस दिन ज्वर से भुगतते हुए हमारे हरिचरण की मृत्यु हो गई। मरने से पहले उसने कई बार आपको देखना चाहा था।

आह! बिना मां-बाप का अनाथ।

धीरे-धीरे दुर्गादास बाबू ने उस पत्र को चिंदी-चिंदी कर फेंक दिया।

लेखक : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

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नाम

अज्ञेय,14,अनाथ लड़की,1,अनुपमा का प्रेम,1,अनुभव,1,अनुराधा,1,अनुरोध,1,अपना गान,1,अपनी करनी,1,अभागी का स्वर्ग,1,अमृत,1,अमृता प्रीतम,8,अलग्योझा,1,अविनाश ब्यौहार,4,अशआर,1,अश्वघोष,6,आख़िरी तोहफ़ा,1,आखिरी मंजिल,1,आत्म-संगीत,1,आर्यन मिश्र,2,इज्ज़त का ख़ून,1,उद्धार,1,उपन्यास,48,कफ़न,1,कबीरदास,2,कबीरदास जी के दोहे,3,कर्मों का फल,1,कवच,1,कविता,60,कविता कैसे लिखते है,1,कविता लिखने के नियम,1,कहानी,130,क़ातिल,1,कुंडलिया छंद,6,क्योंकर मुझे भुलाओगे,1,क्रान्ति-पथे,1,ग़ज़ल,108,ग़ज़ल की 32 बहर,3,गजलें,1,ग़रीब की हाय,1,गिरधर कविराय,5,गिरधर की कुंडलिया,4,गिरधर की कुंडलिया छंद,1,गीत,9,गीतिका,1,गुस्ताख हिन्दुस्तानी,8,गोपालदास "नीरज",14,गोपासदास "नीरज",1,गोस्वामी तुलसीदास,1,गोस्वामी तुलसीदास जी,1,गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे,2,घमण्ड का पुतला,1,घर जमाई,1,घासवाली,1,चंदबरदाई,3,छंद,25,छंद के नियम,1,छंद क्या है,1,छंदमुक्त कविता कैसे लिखें,1,जयशंकर प्रसाद,4,जानभी चौधुरी,2,जीतेन्द्र मीना 'गुरदह',2,जॉन एलिया,16,जौन एलिया,1,ज्वालामुखी,1,ठाकुर का कुआँ,1,डॉ. शिवम् तिवारी,1,डॉ.सिराज,1,तुम और मैं,1,तुलसीदास जी के दोहे,1,तोमर छंद,1,तोमर छंद के नियम,1,तोमर छंद कैसे लिखते है,1,त्रिया-चरित्र,1,दण्ड,1,दिल की रानी,1,दिलीप वर्मा'मीर',1,दीपावली का एक दीप,1,दुर्गा का मन्दिर,1,दुष्यंत कुमार,12,दूसरी शादी,1,देवधर की स्मृतियाँ,1,देवी- एक लघु कथा,1,दैनिक साहित्य,4,दो बैलों की कथा,1,दो सखियाँ,1,दोहा,12,दोहा छंद,6,दोहा छन्द,1,दोहा छन्द की परिभाषा,1,दोहा छन्द की पहचान?,1,नज़्म,7,नमक का दारोगा,1,नवगीत,1,नहीं तेरे चरणों में,1,नाग-पूजा,1,निदा फ़ाज़ली,26,निधि छंद के नियम,1,निधि छंद कैसे लिखते है,1,निमन्त्रण,1,निर्मला,21,निर्वासन,1,नैराश्य लीला,1,पंच परमेश्वर,1,पराजय-गान,1,परिणीता,1,पर्वत यात्रा,1,पहले भी मैं इसी राह से जा कर फिर,1,पुस्तक लोकार्पण,2,पूस की रात,1,प्रतापचन्द और कमलाचरण,1,प्रतीक मिश्रा "निरन्तर",1,प्रस्थान,1,प्रातः कुमुदिनी,1,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,15,बड़े घर की बेटी,1,बत्ती और शिखा,1,बन्द दरवाजा,1,बलिदान,1,बशीर बद्र,1,बहर क्या है?,1,बालकों का चोर,1,बाल्य-स्मृति,1,बूढ़ी काकी,1,भग्नदूत,4,मंझली दीदी,1,मंत्र,1,मनोरम छंद,1,मनोरम छंद कैसे लिखते है?मनोरम छंद क्वे नियम,1,मनोरमगा छंद के नियम,1,मनोरमगा छंद कैसे लिखते है?,1,मन्दिर,1,महातीर्थ,1,महादेवी वर्मा,5,मात्रा गणना कैसे करते है,1,मात्रिक अर्द्धसम छन्द,1,मात्रिक छंद के प्रकार,1,मात्रिक छंद क्या है,1,मिर्ज़ा ग़ालिब,1,मिलाप,1,मिस पद्मा,1,मीनू पंत त्रिपाठी,2,मुंशी प्रेमचंद,126,मुक्तक के नियम?,1,मुक्तक कैसे लिखते है?,1,मुक्तक क्या है?,1,मुहम्मद आसिफ अली,1,मैकू,1,मोटर के छींटे,1,यह मेरी मातृभूमि है,1,रसखान,2,रहस्य,1,राज किशोर मिश्र,1,राजहठ,1,राधिका छंद के नियम,1,राधिका छंद कैसे लिखते है,1,राम जी तिवारी"राम",1,राहत इंदौरी,21,लैला,1,वासना की कडियॉँ,1,विजय,1,विलासी,1,विष्णुपद छंद,1,विष्णुपद छंद कैसे लिखते है?,1,वेदी तेरी पर माँ,1,वैधविक,3,शंखनाद,1,शरतचंद्र चट्टोपाध्याय,32,शराब की दुकान,1,शायरी,2,शास्त्र छंद कैसे लिखते है,1,शास्त्र छंद.शास्त्र छंद के नियम,1,श्रीकान्त,20,श्रृंगार छंद के नियम,1,श्रृंगार छंद कैसे लिखते है?,1,संजय चतुर्वेदी,6,संत कबीरदास,1,संस्मरण,1,सच्चाई का उपहार,1,सती,1,सनातन,1,समर यात्रा,1,सम्भाव्य,1,सरिता कुमारी ‘क़लम’,1,सवैया छंद,2,सागर त्रिपाठी,1,सारी दुनिया के लिए,1,सार्द्धसरस छंद के नियम,1,सार्द्धसरस छंद कैसे लिखते है?,1,साहित्य अकादमी,4,साहित्य ज्ञान,22,साहित्यिक खबरें,5,सुभद्रा कुमारी चौहान,6,सुलक्षण छंद,1,सुलक्षण छंद के नियम,1,सुलक्षण छंद कैसे लिखते है?,1,सूर्यकांत त्रिपाठी निराला,4,सैलानी बन्दर,1,सोहाग का शव,1,सौत,1,स्वर्ग की देवी,1,हम क्या शीश नवाएँ,1,हम लड़कियां है,1,हरिचरण,1,हस्तीमल "हस्ती",1,हस्तीमल हस्ती के दोहे,1,होली की छुट्टी,1,होशियार सिंह ‘शंबर’,1,होशियार सिंह ‘शंबर’ के दोहे,1,Ghazal Ki Matra Aur Bahar,1,Hindi Me Kavita Kaise Likhe,1,How to Write Hindi Poem,1,Kavita Likhna Seekhe,1,manoram chhand,1,Radhika Chhand Kaise Likhte Hai,1,Vishnupad Chhand Kaise Likhate Hai,1,
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दैनिक साहित्य पत्रिका: हरिचरण../ शरतचंद्र चट्टोपाध्याय
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